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Sant kabir Bhajan for Kabir Bhakt

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Bairan Neend Kaha Se Aaye Kabir Bhajan Full Hindi Lyrics उमरिया धोखे में खोये दियो रे। धोखे में खोये दियो रे। पांच बरस का भोला-भाला बीस में जवान भयो। तीस बरस में माया के कारण, देश विदेश गयो। उमर सब … चालिस बरस अन्त अब लागे, बाढ़ै मोह गयो। धन धाम पुत्र के कारण, निस दिन सोच भयो।। बरस पचास कमर भई टेढ़ी, सोचत खाट परयो। लड़का बहुरी बोलन लागे, बूढ़ा मर न गयो।। बरस साठ-सत्तर के भीतर, केश सफेद भयो। वात पित कफ घेर लियो है, नैनन निर बहो। न हरि भक्ति न साधो की संगत, न शुभ कर्म कियो। कहै कबीर सुनो भाई साधो, चोला छुट गयो। Sant kabir Bhajan for Kabir Bhakt जरा धीरे धीरे गाड़ी हांको मोरे राम गाड़ीवाले, जरा हल्के गाड़ी हांको मोरे राम गाड़ीवाले या गाड़ी म्हारी रंग रंगीली, पहिया लाल गुलाल फागुन वालो छैल छबीलो और बैठन वाले दाम जरा हल्के गाड़ी हांको मोरे राम गाड़ीवाले देस देस का वैद बुलाया, लाया जड़ी और बूटी जड़ी़ और बूटी कुछ काम ना आई, जब राम के घर टूटी चार कहार मिलि उठायो, दु‍ई काठ की जोड़ी ल‍ई जा मरघट पे रख दई और फूंक दी‍ए जस होली ...

कबीर भजन (काव्य) 04

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कबीर भजन (काव्य) kabeer bhajan kabeer bhajan उमरिया धोखे में खोये दियो रे। धोखे में खोये दियो रे। पांच बरस का भोला-भाला बीस में जवान भयो। तीस बरस में माया के कारण, देश विदेश गयो। उमर सब …. चालिस बरस अन्त अब लागे, बाढ़ै मोह गयो। धन धाम पुत्र के कारण, निस दिन सोच भयो।। बरस पचास कमर भई टेढ़ी, सोचत खाट परयो। लड़का बहुरी बोलन लागे, बूढ़ा मर न गयो।। बरस साठ-सत्तर के भीतर, केश सफेद भयो। वात पित कफ घेर लियो है, नैनन निर बहो। न हरि भक्ति न साधो की संगत, न शुभ कर्म कियो। कहै कबीर सुनो भाई साधो, चोला छुट गयो।। Lyrics in English umariya dhokhe mein khoye diyo re. dhokhe mein khoye diyo re. paanch baras ka bhola-bhaala bees mein javaan bhayo. tees baras mein maaya ke kaaran, desh videsh gayo. umar sab …. chaalis baras ant ab laage, baadhai moh gayo. dhan dhaam putr ke kaaran, nis din soch bhayo.. baras pachaas kamar bhee tedhee, sochat khaat parayo. ladaka bahuree bolan laage, boodha mar na gayo.. baras saath-sattar ke bheetar, k...

दिवाने मन| Kabir ke Bhajan

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दिवाने मन| Kabir ke Bhajan दिवाने मन दिवाने मन भजन बिना दुख पैहौ॥ टेक॥ पहिला जनम भूत का पै हौ सात जनम पछिताहौ। कॉंटा पर का पानी पैहौ प्यासन ही मरि जैहौ॥ दूजा जनम सुवा का पैहौ बाग बसेरा लैहौ। टूटे पंख मॅंडराने अधफड प्रान गॅंवैहौ॥ बाजीगर के बानर हो हौ लकडिन नाच नचैहौ। ऊँच नीच से हाय पसरि हौ मॉंगे भीख न पैहौ॥ तेली के घर बैला होहौ ऑंखिन ढॉंपि ढॅंपैहौ। कोस पचास घरै मॉं चलिहौ बाहर होन न पैहौ॥ पॅंचवा जनम ऊँट का पैहौ बिन तोलन बोझ लदैहौ। बैठे से तो उठन न पैहौ खुरच खुरच मरि जैहौ॥ धोबी घर गदहा होहौ कटी घास नहिं पैंहौ। लदी लादि आपु चढि बैठे लै घटे पहुँचैंहौ॥ पंछिन मॉं तो कौवा होहौ करर करर गुहरैहौ। उडि के जय बैठि मैले थल गहिरे चोंच लगैहौ॥ सत्तनाम की हेर न करिहौ मन ही मन पछितैहौ। कहै कबीर सुनो भाई साधो नरक नसेनी पैहौ॥

Janam Tera Baton Hi Beet Gayo - जनम तेरा बातों ही बीत गयो - Hindi Lyrics

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Janam Tera Baton Hi Beet Gayo - जनम तेरा बातों ही बीत गयो - Hindi Lyrics जनम तेरा, बातों ही बी.त गयो.. जनम तेरा बातों ही, बी.त गयो.. तुने, कबहुँ न, राम कह्यो.. रे तुने, कबहुँ न कृष्ण कह्यो.. पां.च बरस का, भोला रे भा.ला. अब तो. बीस भयो.. मकर पचीसी, माया कारन देश विदेश गयो.. ती.स बरस की, जब मति उपजी. नित नित, लोभ नयो.. माया जोरी, लाख करोरी अजहु न प्रीत भयो.. वृद्ध भयो. तब, आलस उपजी. कफ नित, कंठ रह्यो.. संगति कबहूं, नाही कीन्ही बिरथा जनम लियो.. ये संसार मतलब का, लोभी झूठा, ठाठ रच्यो.. कहत कबी.र समछ मन मूरख तू क्यों भूल गयो..

Kabir Bhajan कबीर भजन

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Kabir Bhajan कबीर भजन Lyrics:कबीर भजन उमरिया धोखे में खोये दियो रे। धोखे में खोये दियो रे। पांच बरस का भोला-भाला बीस में जवान भयो। तीस बरस में माया के कारण, देश विदेश गयो। उमर सब …. चालिस बरस अन्त अब लागे, बाढ़ै मोह गयो। धन धाम पुत्र के कारण, निस दिन सोच भयो।। बरस पचास कमर भई टेढ़ी, सोचत खाट परयो। लड़का बहुरी बोलन लागे, बूढ़ा मर न गयो।। बरस साठ-सत्तर के भीतर, केश सफेद भयो। वात पित कफ घेर लियो है, नैनन निर बहो। न हरि भक्ति न साधो की संगत, न शुभ कर्म कियो। कहै कबीर सुनो भाई साधो, चोला छुट गयो।।

Dohay (दोहे) Chapter Explanation - पाठ व्याख्या

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Dohay (दोहे) Chapter Explanation - पाठ व्याख्या 1 ) सोहत ओढ़ैं पीतु पटु स्याम ,सलौनैं गात।      मनौ नीलमनि -सैल पर आतपु परयौ प्रभात।। dohay dohay सोहत - अच्छा लगना ओढ़ैं - ओढ़ कर पितु - पीला पटु - कपड़ा गात - शरीर नीलमनि -सैल -- नीलमणि का पर्वत  आतपु - धूप प्रभात- सुबह प्रसंग -: प्रस्तुत दोहा हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक 'स्पर्श ' से लिया गया है। इसके कवि बिहारी हैं। यह दोहा उनकी रचना 'बिहारी सतसई ' से लिया गया है। इसमें कवि ने श्री कृष्ण के रूप सौन्दर्य का वर्णन किया है। व्याख्या -: इस दोहे में कवि ने श्री कृष्ण के साँवले शरीर की सुंदरता का बखान किया है। कवि कहते हैं कि श्री कृष्ण के साँवले शरीर पर पीले वस्त्र बहुत अच्छे  लग रहे हैं। ऐसा लग रहा है जैसे नीलमणि पर्वत पर प्रातः काल की धूप पड़ रही हो। यहाँ पर श्री कृष्ण के साँवले शरीर को नीलमणि पर्वत तथा पीले वस्त्र ,सूर्य की धूप को कहा गया है। dohay 2 ) कहलाने एकत बसत अहि मयूर ,मृग बाघ।     जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ -दाघ निदाघ।। अहि - साँप एकत - इकठ्ठे बसत -रहते हैं मृग - ...